04-09-05   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

“शिक्षा के साथ क्षमा और रहम को अपना लो। दुआयें दो, दुआयें लो तो आपका घर आश्रम बन जायेगा”

आज बापदादा सर्व बच्चों के मस्तक में प्युरिटी की रेखायें देख रहे हैं क्योंकि ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन ही है पवित्रता। पवित्रता की रेखायें कौन-सी हैं, जानते हो? पवित्रता सर्व को प्रिय है। पवित्रता सुख, शान्ति, प्रेम, आनन्द की जननी है। पवित्रता मानव का सच्चा श्रृंगार है। पवित्रता नहीं तो मानव जीवन का मूल्य नहीं। जैसे देखते हो देवतायें पवित्र हैं, इसलिए ही माननीय और पूजनीय हैं। पवित्रता नहीं तो मानव जीवन को आजकल देख रहे हो। बापदादा ने आप सभी बच्चों को बाह्मण जन्म का वरदान यही दिया - पवित्र भव, योगी भव। जिस आत्मा में पवित्रता है, उसकी चाल, चलन, चेहरा चमकता है इसलिए पवित्रता ही जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाली है। वास्तव में आपसब बच्चों का आदि स्वरूप ही पवित्रता है। अनादि स्वरूप भी पवित्रता है। ऐसी पवित्र आत्माओं की विशेषतायें उनकी जीवन में सदा पवित्रता की पर्सनैलिटी दिखाई देती है। पवित्रता की रियलिटी, पवित्रता की रॉयल्टी चेहरे और चाल में दिखाई देती है। यह रेखायें जीवन का श्रृंगार है। रीयल्टी है – “मेरा अनादि-आदि स्वरूप पवित्र है”, यह स्मृति समर्थ बना देती है। रॉयल्टी है - स्वयं भी स्वमान में और हर एक को सम्मान देकर चलने वाला। पर्सनैलिटी है – “सदा सन्तुष्टता और प्रसन्नता”। स्वयं भी सन्तुष्ट और अन्य को भी सन्तुष्ट करने वाले। पवित्रता से प्राप्तियाँ भी बहुत है। बापदादा ने आप सभी बच्चों को क्या-क्या प्राप्ति कराई है, वह जानते हो ना ! कितने खज़ानों से भरपूर किया है। अगर प्राप्तियों को स्मृति में रखें तो भरपूर हो जायें।

सबसे पहला खज़ाना दिया है - ज्ञान का खज़ाना। जिससे जीवन में रहते दुख-अशान्ति से मुक्त हो जाते। व्यर्थ संकल्प, निगेटिव संकल्प, विकल्प, विकर्म से मुक्त हो जाते हैं। अगर कोई भी व्यर्थ संकल्प व विकल्प आता भी है, तो ज्ञान के बल से विजयी बन जाते हैं। दूसरा खज़ाना है - याद, योग। जिससे शक्तियों की प्राप्ति होती है और शक्तियों के आधार से सर्व समस्याओं को, सर्व विघ्नों को सहज पार कर लेते हैं। तीसरा खज़ाना है - धारणाओं का, जिससे सर्वगुणों की प्राप्ति होती है। और चौथा खज़ाना है - सेवा का। सेवा करने से, जिसकी सेवा करते हो उसकी दुआयें मिलती है, खुशी प्राप्त होती हैं।

इतने खज़ाने बाप से आप सभी बच्चों को प्राप्त होते हैं। बाप सभी को एक जैसे ही खज़ाने देते हैं। कोई को कम, कोई को ज्यादा नहीं देते हैं। लेकिन लेनेवालों में फर्क हो जाता है। कोई बच्चे तो खज़ाने को प्राप्त कर खाते, पीते, मौज करते और फिर मौज में खत्म कर देते हैं। और कोई बच्चे खाते, पीते, मौज करते जमा भी करते हैं। और कोई बच्चे कार्य में भी लगाते और बढाते भी जाते हैं। बढाने की चाबी है- खज़ाने को स्व के प्रति और दूसरों के प्रति यूज करना। जो यूज करता है वह बढ़ाता है। तो अपने आपसे पूछो कि यह विशेष खज़ाने जमा हैं? जमा हैं? क्या कहेंगे? हाँ या थोड़ा-थोड़ा? जिसके पास यह खज़ाने जमा हैं वह सदा भरपूर रहता है। देखो कोई भी चीज़ भरपूर रहती है ना, तो हलचल नही होती है। अगर भरपूर नहीं होती तो हलचल होती है, हिलती है। कोई भी चीज़ को अगर पूरी रीति से भर नहीं दो तो वह हिलती है, तो यहाँ भी अगर सर्व खज़ानों से भरपूर नही हैं, तो हलचल होती है। सदा यह नशा रहे कि बाप के खज़ाने मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। बाप ने दिया, आपने लिया तो सब खज़ाने किसके हुए? आपके हो गये ना। तो जिसके पास खज़ाने हैं, वह कितना नशे में रहता है? जैसे छोटा-सा राजा का लड़का राजकुमार होता है। पता भी नही होता है कि बाप के पास क्या-क्या खज़ाना है लेकिन नशा रहता है कि बाप के खज़ाने मेरे खज़ाने हैं और खज़ाने की खुशी में रहता है। अगर खुशी कम रहती है तो उसका कारण क्या होता है? बाप ने तो खज़ाने दिये हैं, सुना। लेकिन एक हैं सुननेवाले, दूसरे हैं समानेवाले। जो समानेवाले हैं वह नशे में रहते हैं।

आज नये-नये बच्चे भी आये हैं। बापदादा आप लक्की बच्चों को आप सबके भाग्य की मुबारक दे रहे हैं। अपने भाग्य को पहचाना। पहचाना है? परमात्म-प्यार, अविनाशी प्यार जो सिर्फ एक जन्म नहीं चलता, अनेक जन्म सदा ही प्यार कायम रहता है क्योकि यह जो समय चल रहा है, यह समय भी संगमयुग भाग्यवान युग है। सतयुग को भी भाग्यवान कहते हैं लेकिन वर्तमान संगमयुग का समय उससे भी भाग्यवान है। क्यों? इस सगमयुग में ही बाप द्वारा अखण्ड भाग्य का वरदान, वर्सा प्राप्त होता है। तो ऐसे संगमयुग में, भाग्यवान समय में आप सभी अपना भाग्य लेने के लिए पहुँच गये हो। बापदादा बच्चों को बहुत एक सहज पुरुषार्थ की विधि सुनाते हैं - सहज चाहते हो ना। मुश्किल तो नहीं चाहते हो ना। इन बच्चों को तो भाग्य की सहज विधि मिल गई है। मिली है ना? सबसे सहज, और कुछ भी नही करना, सिर्फ एक बात करना। एक बात तो कर सकते हो ना ! हाँ करो या ना करो। कहो हाँ जो। तो सबसे सहज विधि है - अमृतवेले से लेके सबको जो भी मिले, उससे दुआयें लो और दुआयें दो। चाहे क्रोधी भी आवे, लेकिन आप उसको भी दुआयें दो और दुआयें लो क्योंकि दुआयें तीव्र पुरुषार्थ का बहुत सहज यन्त्र है। जैसे साइन्स में रॉकेट है ना, तो कितना जल्दी कार्य कर लेता है। ऐसे दुआयें देना और दुआयें लेना, यह भी एक बहुत सहज साधन है आगे बढ़ने का। अमृतवेले बाप से सहज याद से दुआयें लो और सारा दिन दुआयें दो और दुआयें लो। यह कर सकते हो? कर सकते हो तो हाथ उठाओ। कोई बददुआ दे तो क्या करेंगे? आपको बार-बार तंग करे तो? देखो, आप परमात्मा के बच्चे दाता के बच्चे दाता हो ना ? मास्टर दाता तो हो। तो दाता का काम क्या होता है? देना। तो सबसे अच्छी चीज़ है दुआयें देना। कैसा भी व्यक्ति हो, लेकिन है तो आपका भाई-बहन। परमात्मा के बच्चे तो भाई-बहन हो ना। तो परमात्मा का बच्चा है, मेरा ईश्वरीय भाई है, ईश्वरीय बहन है, उसको क्या देंगे? बददुआ देंगे क्या? बाप कभी बद्दुआ देता है? देगा? देता है? हाँ या ना? हाँ-ना करो। बहुत खुश रहेंगे। क्यों? अगर बद्दुआ वाले को भी आप दुआ देंगे, वह दे न दे, लेकिन आप दुआ लेंगे, तो दु:ख क्यों होगा। बापदादा आप आये हुए बच्चों को एक वरदान देता है- वरदान याद रखेंगे तो सदा खुश रहेंगे। वरदान सुनेंगे? सुनेंगे।

वरदान है- अगर आपको कोई दुख दे तो भी आप दुख लेना नहीं। वह दे लेकिन आप नही लेना। क्योंकि देनेवाले ने दे दिया, लेकिन लेनेवाले तो आप हो ना। देनेवाला, लेनेवाला नहीं है। अगर वह बुरी चीज़ देता है, दुख देता है, अशान्ति देता है, तो बुरी चीज़ है ना। आपको दुख पसन्द है? नहीं पसन्द है ना। तो बुरी चीज़ हो गई ना। तो बुरी चीज़ ली जाती है क्या? कोई आपको बुरी चीज़ देवे तो आप ले लेंगे? लेंगे? नही लेंगे। तो लेते क्यों हो? ले तो लेते हो ना। अगर दुख ले लेते हो तो दुःखी कौन होता है? आप होते हो या वह होता है? लेने वाला ज्यादा दु:खी होता है। अगर अभी से दु:ख लेंगे नहीं तो आधा दु:ख तो आपका दूर हो गया। लेंगे ही नहीं ना। और आप दु:ख के बजाए उसको सुख देंगे तो दुआयें मिलेगी ना। तो सुखी भी रहेंगे और दुआओं का खज़ाना भी भरपूर होता जायेगा। हर आत्मा से, कैसी भी हो आप दुआयें लो।

शुभभावना, शुभकामना रखो। कभी-कभी क्या होता है? कोई ऐसा काम करता है ना, तो कोशिश करते हैं शिक्षा देने की। इसको ठीक कर दूँ, शिक्षा देते हो। शिक्षा दो लेकिन शिक्षा देने की सर्वोत्तम विधि है कि क्षमा का रूप बनके शिक्षा दो। सिर्फ शिक्षा नहीं दो, रहम-क्षमा भी करो और शिक्षा भी दो। दो शब्द याद रखो - शिक्षा और क्षमा-रहम। अगर रहमदिल बनके उसको शिक्षा देंगे तो आपकी शिक्षा काम करेगी। अगर रहमदिल बनके नहीं देंगे, तो शिक्षा एक कान से सुनेंगे दूसरे कान से निकल जायेगी। शिक्षा धारण नहीं होगी। ऐसे है ना? अनुभव है? आप भी किसीका शिक्षक तो नही बन जाते? शिक्षक बनना जल्दी आता है लेकिन क्षमा करना, दोनों साथ-साथ चाहिए। अभी से रहम। रहम करने की विधि है शुभभावना, शुभकामना। जैसे कहते हैं ना सच्चा प्यार पत्थर को भी पानी कर देता है, ऐसे ही क्षमा स्वरूप से शिक्षा देने से आपका कार्य जो चाहते हो, यह नही करे, यह नहीं हो, वह प्रत्यक्ष दिखाई देगा। आपके रहमदिल बन शिक्षा देने का प्रभाव उसकी कठोरदिल भी परिवर्तन हो जायेगी। तो क्या वरदान मिला? न दुःख देना, न दु:ख लेना। पसन्द है? पसन्द है तो अभी लेना नहीं। गलती नही करना। जब बाप दु:ख नहीं देता तो फालो फादर तो करना है ना? कर रहे हैं। कभी-कभी थोड़ा डाँट देते हो। डाँटना नहीं। रहम करो। रहम के साथ शिक्षा दो। बार-बार किसको डाँटने से और ही आत्मा जो है ना, वह दुश्मन बन जाती है। घृणा आ जाती है। परमात्म बच्चे हो ना। तो जैसे बाप पतित को भी पावन बनाने वाला है, तो आप दुःखी को सुख नही दे सकते हो? अभी जाकर ट्रायल करना, ट्रायल करेंगे ना। तो पहले चैरिटी बिगन्स एट होम। परिवार में अगर कोई दु:ख देवे, तो भी दु:ख लेना नहीं। दुआयें देना, रहमदिल बनना। पहले घरवालों पर करो। आपके घर का प्रभाव मोहल्ले में पड़ेगा, मोहल्ले का प्रभाव देश में पड़ेगा, १ देश का प्रभाव विश्व में पड़ेगा। सहज है ना। अपने परिवार में शुरू करो क्योंकि देखो एक भी अगर क्रोध करता है तो घर का वातावरण क्या हो जाता है? घर लगता है या युद्ध का मैदान लगता है? उस समय अच्छा लगता है? नहीं लगता है ना ?

आप लोगों के लिए भी है (आज वी. आई.पी. के साथ मधुबन वाले समर्पित भाई-बहनें भी सामने बैठे हैं)। अपने-अपने साथियों से, अपने-अपने कार्यकर्ताओं से न दुख लेना, न दु:ख देना। दुआयें देना और दुआयें लेना। अगर आप अधिकार से ऐसे समय पर भी दिल से मेरा बाबा कहेंगे, परमात्मा बाबा, मेरा बाबा, तो कहावत है कि भगवान सदा हाजिर है। अगर आपने दिल से, अधिकार रूप में ऐसे समय पर मेरा बाबा कहा, तो बाप जरूर हाजिर हो जायेगा। क्योंकि बाप किसलिए है? बच्चों के लिए तो है। और अधिकारी बच्चे को बाप सहयोग नहीं दे, यह हो ही नहीं सकता है। असम्भव। तो परिवर्तन करके जाना। जैसे आये वैसे नही जाना, परिवर्तन करके ही जाना। क्योंकि टेखो, इतना खर्चा करके आये हो, टिकट तो लगी ना। खर्चा भी किया, समय भी दिया, तो उसकी वैल्यू तो रखेंगे ना। तो वैल्यू है- स्वपरिवर्तन से पहले घर का परिवर्तन, फिर विश्व का, देश का परिवर्तन। आपका घर आश्रम बन जाये। घर नहीं, आश्रम। वैसे भी आश्रम ही कहते हैं, गृहस्थ आश्रम, लेकिन आज आश्रम नहीं हैं। आश्रम अलग है, घर अलग है। तो घर को आश्रम बनाना। दुआयें देना और लेना, यह आश्रम का कार्य है। आपका घर मन्दिर बन जायेगा। मन्दिर में मूर्ति क्या करती है? दुआयें देती है ना। मूर्ति के आगे जाकर क्या कहते हैं? दुआ दो। मर्सी, मर्सी कहके चिल्लाते हैं।  तो आपको भी क्या देना है? दुआ। ईश्वरीय प्यार दो, आत्मिक प्यार। शरीर का प्यार नहीं, आत्मिक प्यार। आज प्यार है तो स्वार्थ का प्यार है। सच्ची दिल का प्यार नहीं है। स्वार्थ होगा तो प्यार देंगे, स्वार्थ नहीं होगा तो डोंट-केयर। तो आप क्या करेंगे? आत्मिक प्यार देना, दुआ देना, दुख न लेना, न दु:ख देना। देखो आपको चांस मिला है, बापदादा को भी ख़ुशी है। इतने जो भी सब आये हैं, (भारत के करीब २५० वी.आई.पी रिट्रीट में आये हुए हैं)| इतने घर तो आश्रम बनेंगे ना। बनायेंगे ना? पक्का? कि थोड़ा-थोडा कच्चा? जो समझते हैं कुछ भी हो जाए, थोडा सहन तो करना पडेगा, समाने की शक्ति कार्य में लगानी पड़ेगी, लेकिन सहनशक्ति का फल बड़ा मीठा होता है। सहन करना पड़ता है लेकिन फल बड़ा मीठा होता है। तो जो पक्का वायदा करते हैं, घर-घर को स्वर्ग बनायेंगे, मन्दिर बनायेंगे, आश्रम बनायेंगे, वह हाथ उठाओ। देखा-देखी में नहीं उठाना क्योंकि बापदादा हिसाब लेगा ना फिर। देखकर नहीं उठाना। सच्चा-सच्चा मन का हाथ, मन से हाथ उठाओ। अच्छा। दादियाँ, इनको इसकी क्या प्राइज देंगे? हाँ बोलो, दादी इतने मन्दिर बन जायेंगे तो आप उसको क्या प्राइज देंगी? (अपने घरवालों को ले आवे)। यह तो प्राइज नहीं दी, यह तो काम सुना दिया। (बाबा जो आज्ञा करेंगे)। देखो, प्राइज तो आपको मिल जायेगी, कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन -लेकिन है? लेकिन बोलो। आप जाने के बाद अपनी धारणा से परिवर्तन करना और 15 दिन के बाद, मास के बाद अपनी रिजल्ट लिखना। जो एक मास भी दुख नही लेगा, न देगा, उसको बहुत अच्छी प्राइज देंगे। अगर आप आयेंगे तो मुबारक है, अगर नहीं आ सकेंगे तो भी सेंटर पर भेजेंगे।

आज विशेष इन्हों के प्रति आना हुआ है ना तो कमाल करके दिखाना। परमात्म बच्चे हो, कमाल नहीं करेंगे तो क्या करेंगे ? धमाल नहीं करना, कमाल करना। अगर कोई गलती से आपके पास बुरा संकल्प आ जाये, तो क्या करेंगे? आयेगा तो सही, क्योंकि आपने बहुत समय बुराई को पाल के रखा है, तो देखो, पशु जिसे पालते हैं उसको अगर दूर भी छोड़कर आते हैं, तो वह फिर वापस आ जाता है। तो मानो आपने हाथ तो उठाया, बहुत अच्छा किया लेकिन गलती से कोई कमज़ोरी आ जाए, तो क्या करेंगे? कमज़ोरी लाने देंगे? देखो, इसकी भी विधि बताते हैं। आपने वायदा तो किया ना, बुराई दे दिया ना। बुराई बाप को दे दी ना। अच्छा कोई को कोई चीज़ दे देते हैं, फिर अगर गलती से आपके पास आ जाती है तो आप क्या करेंगे? अपने पास रखेंगे कि वापस करेंगे? वापस करेंगे ना? तो अगर आपके पास थोड़ी क्रोध की रेखा, लोभ की, मोह की, अभिमान की, गलती से आ भी जाये, क्योंकि बहुत समय रखा है, तो उसे वापस कर देना। बाबा, बाबा आप अपनी चीज़ आप सम्भालो, मेरी नहीं है। बाप तो सागर है ना। सागर में समा देना। आप यूज नहीं करना क्योंकि अमानत हो गई ना, तो अमानत में खयानत नहीं की जाती है। बाप को दे दो, बाबा आप जानो, यह जाने। मैं नहीं यूज करूँगा। छोटे बच्चों को भी आप सिखाते हो, मिट्टी नहीं खाना। सिखाते हो ना ? और बच्चा फिर मिट्टी खा लेता है। उसको मिट्टी अच्छी लगती है फिर आप क्या करते हो? बार-बार उसके हाथ को छुड़ाते हो या खाने देते हो? छुड़ाते हो ना। तो यहाँ अपने मन को छुड़ाना। मन में ही तो आयेगा ना। तो अपने मन का मालिक बनके इस चीज़ को छोड़ना। विधि ठीक है ना। करेंगे तो सहज हो जायेगा। हिम्मत नहीं छोडना। आपकी हिम्मत का एक कदम और हजार कदम बाप की मदद का है ही। अनुभव करके देखना। हिम्मत नहीं हारना, दिलशिकस्त नहीं होना। सर्वशक्तिवान के बच्चे हैं, दिलशिकस्त नहीं होना। हिम्मत नहीं हारना, दृढ़सकल्प करना, सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है।

बहुत अच्छा किया। अच्छा अभी क्या करना है? इसको कहते हैं वी. आई .पी. ग्रुप। देखो, आपको टाइटल अच्छा मिला है। अभी वी.आई.पी. नही बनना, वी.वी आई.पी.। वी.आई.पी. तो कॉमन है, लेकिन वी.वी.आई.पी। विशेष आत्मा आई पी। अच्छा। आज मधुबन निवासियों को चांस मिला है। यह सभी मधुबन निवासी आप सब आये हुए भाई-बहनों को बहुत थैंक्स दे रहे हैं कि आपके कारण मधुबन निवासी भी मिले क्योंकि आपका ग्रूप छोटा है। नहीं तो बहुत हजारों का ग्रुप होता है।

तो एक मास के बाद अपने सेन्टर की तरफ से रिजल्ट लिखना। फिर प्राइज जरूर देंगे। अच्छा। अच्छा, अभी क्या करना है? (जोन वाइज मिलना है)

दिल्ली जोन- दिल्ली निवासियों को तो सेवा का चांस बहुत अच्छा है क्योंकि दिल्ली की जो भी सेवायें होती हैं, वह विश्व में फैलती है। दिल्ली का आवाज विश्व तक पहुँचता है। तो दिल्ली से अभी कितने आये हैं? (५०) तो जब दिल्ली में ५० घर आश्रम बन जायेंगे तो नाम कितना होगा। वायुमण्डल तो बदलेगा ना क्योंकि कोशिश तो सब करते हैं कि घर-घर में हर आत्मा शान्त हो जाए, सुखी हो जाए। तो जब दुआ देंगे और लेंगे तो घर में सुख और शान्ति का वायब्रेशन होगा और वह आवाज वायुमण्डल में फैलेगा। एक तो घर आश्रम बनेगा और वायुमण्डल भी फैलेगा। डबल सेवा हो जायेगी। तो क्या बनेंगे? दिल्ली वाले नम्बर वन बनेंगे या दो भी चलेगा? एक नम्बर लेना है या दो भी चलेगा? (एक नम्बर लेना है) अच्छा, फिर तो सब ताली बजाओ। बहुत अच्छा हिम्मतवान बच्चों को बापदादा की पदमगुणा मदद है ही है। अच्छा।

पंजाव-हरियाणा, हिमाचल, जम्बू कश्मीर और उत्तरांचल- अच्छा है| पंजाब में नदियाँ बहुत है। तो नदियों का काम क्या है? नदियाँ सभी को शीतलता देती है। तो आप परमात्म बच्चे पंजाब में शीतलता, शान्ति का वायुमण्डल फैलायेंगे। वैसे पंजाब को शेर भी कहते हैं। पंजाब शेर है, तो शेर किससे डरता नहीं है, डराता है। डरता नहीं है तो आप भी माया से डरना नहीं। मास्टर सर्वशक्तिवान बन सामना करना, ठीक है। इतनी ताकत है पंजाब में? करेंगे? चाहे उत्तरांचल हो, चाहे क्या भी हो, सभी करेंगे? तो हिम्मते बच्चे मददे बाप। कुछ भी आवे, मेरा बाबा कहने से सब खत्म हो जायेगा। दिल से कहना, सिर्फ मुख से नही, मन से कहेंगे तो सब दु:ख दूर हो जायेंगे। अच्छा।

आन्ध्र प्रदेश- (करीब ४० हैं) सदा अपने को, हम विजयीरत्न हैं क्योंकि परमात्मा का साथ है तो परमात्मा जिसका साथी है वह सदा विजयी है ही है। तो सदा अपने को परमात्म साथी पाण्डव अनुभव करना। विजय आपके गले का हार है, यही सदा स्मृति में रखना। गले में विजय की माला पिरोई हुई है। यह निश्चय और नशा रखना। ठीक है ना ! अभी आन्ध्रा नम्बर लेना। वह कहते हैं नम्बरवन और आप भी नम्बरवन बनना है तो नंबरटू बनके क्या करेंगे। तो आप भी नम्बरवन बनना। विन करेंगे तो वन होंगे। विन करना आता है ना, तो विन, वन। अच्छा।

मुम्बई और महाराष्ट्र- महाराष्ट्र का अर्थ ही है महान, महान हो ना। अभी बाप की याद और सेवा द्वारा अपने को महान बनाये औरों को भी महान बनाना। जैसा नाम है ना महाराष्ट्र। तो कोई महान कार्य करेंगे ना। तो महान बनना ही है, और महान कार्य करके दिखाना है। ऐसे पक्के हैं? पक्के? महान तो पक्के ही होते हैं। बापदादा को खुशी है हर एक जो भी आये हैं वह हिम्मतवाले हैं। घबराने वाले नहीं हैं। इमलिए मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।

कर्नाटक- कर्नाटक वालों को बापदादा कहते हैं, देखो नाम है, कर-नाटक, नाटक कर। तो इस सृष्टि को भी नाटक कहते हैं, बेहद का ड्रामा। इसमें कर्नाटक वाले क्या बजायेंगे? हीरो पार्ट बजाएंगे? हीरो। अच्छा इसके लिए क्या करना पडेगा। बहुत छोटी-सी बात है, जीरो का याद करना तो हीरो बन जायेंगे। सहज है ना। और जीरो स्वयं आत्मा भी है, और जीरो बाप भी है, तो जीरो को याद करना, हीरो बन पार्ट बजाना, ठीक है ना। बहुत अच्छा। भले आये। मुबारक हो।

तामिलनाडु- देखो पाण्डव भी पाँच थे| आप अगर थोडे हैं, कोई हर्जा नही। लेकिन पाँच पाण्डव थाडे होते भी विजयी बन गये। तो आप आये थोड़े हो लेकिन विजयीरत्न हैं, और सदा विजयी रहेंगे, संख्या कम है तो कोई हर्जा नहीं लेकिन विजयी हैं, विजयी रहेंगे। तो विजय का वरदान आप सबका विशेष है। ठीक है, विजयी बनेंगे।

गुजरात- बापदादा आप सबके मस्तक में क्या देख रहें हैं? बापदादा आपके मस्तक में तीन बिन्दुओं का तिलक देख रहें हैं। वह तीन बिन्दियाँ हैं, एक आप आत्मा बिन्दी, बिन्दी हो ना। बाप भी बिन्दी, और जो कुछ ड्रामा में बीत जाता है तो उसको फुलस्टॉप लगाया जाता है, तो फुलस्टॉप भी बिन्दी होता है ना। तो आप सबके मस्तक में तीन बिन्दुओं का तिलक देख रहें हैं। अभी रोज अमृतवेले उठकर बापदादा से मिलन मनायें शक्ति लें, दुआयें लें, अपने आपको तीन बिन्दुओं का तिलक लगाना। तिलक मस्तक में ही लगाया जाता है क्योंकि मस्तक स्मृति का स्थान है। तो आप स्मृति का, तीन बिन्दुओं का रोज तिलक लगाना। तिलक लगाना आता है ना। अभी यह तिलक लगाना तो सारा दिन बहुत सहयोग मिलेगा। तिलकधारी बन ताजधारी बन जायेंगे, तख्तधारी बन जायेंगे। अच्छा।

ईस्टर्न- ईस्ट से क्या निकलता है? सूर्य निकलता है। तो आप ईस्टर्न जोन की तरफ से आये हो तो क्या जाकर करेंगे? ज्ञानसूर्य उदय हो चुका है, इसका परिचय सबको देना। जैसे सूर्य सबको सकाश देता है ना, रोशनी देता है ना, ऐसे आप भी मास्टर हो ना। आप मास्टर ज्ञानसूर्य हो गये तो आप क्या करेंगे? सबको रोशनी देना, सकाश देना। यह है ईस्टर्न जोन का कार्य। ठीक है? बहुत अच्छा। वैसे ईस्टर्न से ही ब्रह्मा बाप निकला, लक्की है। तो आप लोग तो डबल लकी हो गये। स्थान भी लकी आत्मायें भी लकी। अच्छा। बहुत अच्छा।

राजस्थान- नाम ही है राजस्थान। तो राजस्थान में राजायें रहते थे। अभी तो नहीं हैं लेकिन रहते थे। तो आप भी राजा बनके जा रहे हैं। राजा बने? स्वराज्य। स्वराज्य का तिलक लगाया ना। तो हमेशा यही याद रखना कि हम राजस्थान के स्वराज्य अधिकारी हैं। जो स्वराज्य अधिकारी बनता है वह विश्व का राज्य अधिकारी अन्डस्टुड बनता है। तो स्वराज्य कभी ढीला नहीं करना, राजा तो राजा होता है ना। कभी भी कोई कमेंन्द्रियों के वश नहीं होना। राजा बनके ऑर्डर करना, राजा बनके कायदे से चलाना। तो राजस्थान को स्वराज्य अधिकारी का वरदान है। ठीक है ना 'स्वराज्य है ना पक्का'। देखो राजस्थान बहुत नजदीक है तो जो नियरेस्ट होता है वह डियरेस्ट होता है। तो ऐसे ही अपने को अनुभव करना। अच्छा।

यूपी:- तीन हैं। तीन तो त्रिमूर्ति गाई हुई है। तो एक है मास्टर ब्रह्मा, मास्टर विष्णु, मास्टर शंकर, त्रिमूर्ति हो गई। बहुत अच्छा। देखो, परमात्मा भी त्रिमूर्ति शिव कहलाया जाता है। तो आप त्रिमूर्ति भी कमाल करके दिखायेंगे। बापदादा हमेशा छोटा जो होता है ना उसको समान बाप कहते हैं। तो आपकी संख्या थोडी है लेकिन हैं बाप समान। अभी दूसरी बारी अपना ज्यादा संगठन बनाके आना। बनायेंगे ना ? आप समान बनाके फिर बड़े संगठन से प्राइज आके लेना। अच्छा।

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़:- अच्छा है। आप सभी इन्दौर और भोपाल दोनों ऐसी कमाल करके दिखाना जो अबतक किसने की नहीं हो क्योंकि इन्दौर ब्रह्मा बाप ने अपने संकल्प से स्थापन किया था। इन्दौर की विशेषता है, ब्रह्मा बाप की नजर इन्दौर के ऊपर पड़ी थी। तो इन्दौर वाले और भोपाल वाले, हैं तो मध्यप्रदेश। लेकिन ऐसी कमाल करके दिखाना, कम-से-कम एक कमाल यह करना, इजी है – कोई-न-कोई ऐसा माइक तैयार करो जिसकी आवाज सुनकर सभी पर, अनेकों के ऊपर, प्रभाव पड़े। अनेकों का कल्याण करने के निमित्त बन जाए। जैसे देखो एक माइक कितना कार्य कर रहा है, कितने सुन रहे हैं। तो ऐसा अथॉरिटी वाला बोल हो, जो अनेक सुन करके परिवर्तन हो जाए, उसको बापदादा कहते हैं ‘माइक’। तो कम-से-कम एक माइक तैयार करके आना। ठीक है? कमाल करना। बस सिर्फ मेरा बाबा, मेरी सेवा, यह याद रखना तो सब काम हो जायेगा। अच्छा।

श्रीलंका, मलेशिया, यू.एस.ए.:- देखो विदेश की भी सौगात देख ली ना। श्रीलंका में सेवा बहुत अच्छी की है। बापदादा ने समाचार सुना कि प्रकृति के जल सुनामी की हालत में श्रीलंका वालों ने बहुत सहयोग दिया, आध्यात्मिक भी और चीजों का भी। और बापदादा ने बहुत अच्छी खबर सुनी है कि वहाँ सेवाकेन्द्र खोलने की कोशिश कर रहे हैं, जहाँ आपदायें आई थी, तो यह भी अच्छा प्लैन बना रहे हैं और श्रीलंका का नाम सुन करके तो रावण को जीतने का संकल्प आता है। तो श्रीलंका में रावण का नामनिशान नहीं रहे, रावण वह नहीं, यह 5 बुराईयाँ ही रावण है। 5 विकार नारी में भी है, 5 विकार नर में भी है, तो दोनों का मिला हुआ १० शीश वाला रावण दिखाते हैं। बाकी १० शीशवाला मनुष्य सोयेगा कैसे, खायेगा कैसे, लेकिन यह बुराईयों का सूचक है। तो लंका निवासी बहुत अच्छा प्लैन बना रहें हैं और सारे ब्राह्मण परिवार आपके सहयोगी हैं, बापदादा तो है ही। पहले बापदादा फिर सर्व परिवार भी इस सेवा के सहयोगी हैं। अच्छी उन्नति कर रहे हैं। इसके लिए मुबारक है, पदमगुणा मुबारक। अच्छा।

मलेशिया में भी सेवा का उमंग बहुत है। बापदादा के पास तो सब समाचार भी आते हैं। और अभी-अभी याद भी भेजी है ना। तो मलेशिया में सर्विस का शौक अच्छा है और सेंटर के पीछे सेन्टर खोलते ही जाते हैं और सफलता भी मिलती जाती है इसीलिए मलेशिया वाली सभी ब्राह्मण आत्माओं को जिन्होंने भी यादप्यार भेजा है, पत्र भेजा है, उन सभी बच्चों को पदमगुणा दुआयें और यादप्यार। अच्छा।

आप सभी मधुबन निवासी अपने भाई-बहनों को देखकर बहुत खुश हुए ना। खुश हैं? आप लोगों ने मधुबन में रौनक कर दी। बापदादा कहतें है कि बच्चे मधुबन का श्रृंगार हैं। तो मधुबन वाले, देखो आप लोगों को देखकर बहुत खुश हो रहें हैं। सेवा का चांस दिया तो कितना पुण्य जमा हो गया, इसीलिए खुश हो रहे हैं। अच्छा। यह भी आज का मिलन ड्रामा में नूँधा हुआ था जो रिपीट हुआ और हर कल्प रिपीट होता रहेगा। अच्छा।

चारों ओर के देश विदेश के बच्चों की याद बापदादा को मिली है। चाहे फोन द्वारा याद भेजी है, चाहे पत्र द्वारा, चाहे दिल में याद किया है, तो बापदादा सभी बच्चों को चाहे भारत के, चाहे विदेश के रिटर्न में दुआयें और यादप्यार पदमगुणा दे रहें हैं। चारों ओर के परमात्म प्यार के अधिकारी बच्चों को, चारों ओर सर्व खज़ानों से भरपूर, निर्विघ्न, निर्विकल्प, निरव्यर्थ संकल्प रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, साथ-साथ सर्व परिवर्तन करने और कराने के उमंग-उत्साह में उड़ने वाले बच्चों को, साथ-साथ बापदादा को सच्ची दिल का समाचार देनेवाले सच्चे दिलवाले बच्चों को विशेष दिलाराम के रूप में, बाप के रूप में, शिक्षक के रूप में, सतगुरू के रूप में पदमगुणा यादप्यार और नमस्ते।

बी.के. गाइड और सेवाधारी- बापदादा सेवाधारी बच्चों को सेवा की मुबारक दे रहे हैं। बहुत अच्छी-अच्छी आत्मायें लाई हैं, हिम्मत वाली लाई हैं, और हिम्मत का प्रत्यक्ष प्रमाण दिखलाने वाली आत्मायें लाई है, इसलिए जो भी जितनों को भी लाये हैं, उतने पदमगुणा मुबारक हो। अच्छा है। गोल्डन चांस भी मिल गया। सेवा का प्रत्यक्ष फल तो मिल गया। ऐसे ही सारे विश्व को बाप के प्यार, बाप के सन्देश का जरूर कार्य करते रहेंगे। करना ही है। है ही इसीलिए निमित्त। तो सच्चे-सच्चे पण्डे तो आप हो। कितनी अच्छी यात्रा करा दी है। बापदादा बच्चों की सेवाको देख खुश होते हैं। तो देख लिया, अच्छे हैं, महारथी हैं, सेवा में महारथी बनके आये हैं। अच्छा। टीचर्स को भी अच्छा चांस मिला है। पाण्डवों को भी अच्छा चांस मिला है।

दादियों से:- दादियों को देख करके सभी खुश हो रहे हो ना। दादियों को प्यार मिला, सबको मिला। अच्छा है, आप सभी निमित्त बने हुए को देख करके हर्षित होते हैं।

मुन्नी बहन से:- निमित्त बने हुए कार्य को अच्छी तरह से चला रही हो, चलाती रहेगी।

 

आप सभी भी निमित्त हो। सबकी नजर पहले मधुबन निवासियों के ऊपर पडती है। मधुबन में निमित्त बनना अर्थात् लाइट हाउस बनना, लाइट देना।

नीलू बहन से:- अच्छा पार्ट बजा रही हो और निर्संकल्प होकर बजाती रहो। बापदादा आपके दिल की बातें जानते हैं।

(दादी रतनमोहिनी ने जापान, हांगकांग, मनीला के भाई-वहनों की याद दी), वहाँ सेवा करके वापस आई हैं - सेवा में कितनो की दुआये मिलती है। दुआये देकर भी आते हो और दुआये लेकर भी आते हो। रिफ्रेश होना अर्थात् दिल में शक्तियो की ज्वाला जग जाती है। सब खुश भी होते है और आपकी सेवा का प्रत्यक्ष फल आपको भी मिल जाता है।

तीनों वड़े भाईयों से - सेवा का फल आपको भी मिल जाता है। तीनो ही मिलके यज्ञ की कई कारोबार सम्भाल रहे हो, सम्भालते रहना, तीनो मिलके। एकने कहा दूसरे ने हो जी किया। ऐसा है ना! बापदादा खुश होते है, जब मिल करके कोई कार्य सफल करते हो। कर रहे हो, करते रहेगे। अच्छा।

(मदुरई के मेगा प्रोग्राम का समाचार बापदादा को सुनाया और सभी की याद दी) बापदादा ने कहा मदुरई व तामिलनाडु के सभी भाई-बहनों को भी बहुत-बहुत याद देना।

(निवैर भाई आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड सेवा पर जाने की छुट्टी ले रहे हैं) - आस्ट्रेलिया को थोड़ा बल भरना। आस्ट्रेलिया नम्बरवन था। अभी हो रहा है, हो जायेगा। आत्मायें बहुत अच्छी हिम्मत कर आगे बढ रही हैं, लेकिन गुप्त है। अच्छा।

मधुबन निवासी समर्पित भाई-बहनों ने बापदादा से मुलाकात

मधुबन निवासी बच्चों को, जो भी ब्राह्मण हैं वह सभी किस नजर से देखते हैं। जानते हो ना। मधुबन नियासियों को सभी बहुत विशेष नजर से देखते हैं। जैसे स्थान विशेष है, हेडक्वार्टर कहा जाता है। ऐसे ही हर एक मधुबन निवासियों को उसी नजर से देखते हैं। यह विशेष आत्मायें हैं। और आज तो विशेष समर्पित भाई-बहन बैठे हो। समर्पित अर्थात् तन-मन-वस्तु चाहे किसी भी रूप में है, साधन के रूप में है या धन के रूप में है। लेकिन समर्पित अर्थात् जो भी है वह बाप के अर्पण हो गया। उसी को ही समर्पित कहा जाता है। समर्पित अर्थात् जिसमें मेरापन का अंश भी नहीं। कभी गलती से भी मेरापन नहीं है। समर्पित का अर्थ ही है- मेरा एक बाबा, बाप के साथ दादा तो है ही। समर्पित अर्थात् साकार रूप में कर्म में ब्रह्मा बाप समान और निराकारी श्रेष्ठ योग की स्थिति में निराकार शिव बाप के समान। तो ऐसे अपने को समझते हो? न हद का मैंपन, न हद का मेरापन। स्थान भी देखो चाहे पाण्डव भवन है, चाहे शान्तिवन है, चाहे ज्ञान सरोवर है, चाहे हॉस्पिटल है, लेकिन स्थान भी बेहद के मिले हैं। संगठन भी बेहद का मिला है। ऐसे बेहद की स्थिति अनुभव करते हो? जो समझते हैं कि बेहद की स्थिति रहती है, हद का मैं और मेरापन नहीं है, वह हाथ उठाओ। मेरापन नहीं है? फिर तो मधुबन निवासी मैजारिटी पास है। तो दादियों द्वारा पास सर्टीफिकेट मिला है? हाँ सभी कहते हैं, मेरे में मेरापन नहीं है, मैपन नहीं है। आपने (दादी से) सर्टीफिकेट दिया है? (नहीं)| जिन्होंने हाथ उठाया है वो लिखकर दे देवे तो पक्का हो जायेगा। फिर तो बाप समान बन गये ना। देखो, तीन सर्टिफिकेट लेने हैं। एक स्वयं को साक्षी होकर सर्टीफिकेट देना। हाथ उठाने से नही, हाथ तो सभी उठा लेते हैं। कोई भी क्वेश्चन में उठा लेते हैं। मन का हाथ उठे। एक अपने आपको साक्षीदृष्टा बन सर्टिफिकेट दो। और दूसरा- जिन साथियों के साथ कार्य करते हो उनका सर्टिफिकेट चाहिए। तीसरा- दादियों का चाहिए। चौथा- बाप का चाहिए क्योंकि बाप तो सबके मन की गति को देखते हैं। मुख की गति नहीं, मन की गति को देखते हैं। अच्छा है, हिम्मत रखी है हाथ उठाने की, तो हिम्मत को कायम रखना। प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देवे कि मधुबन निवासी हर एक सर्टीफिकेट लेने वाला है क्योंकि मधुबन का वायुमण्डल छिपता नहीं है। मधुबन वाले समीप रहते हैं, बाप की पालना, विशेष आत्माओं की पालना मिल रही है। अभी बापदादा मधुबन निवासियों से एक बात चाहते हैं, हर शख्स जो भी सेवा अर्थ निमित्त है, उस सेवा में वायुमण्डल ऐसे स्पष्ट दिखाई दे, जैसे फरिश्ते कर्मयोगी बनके कर्म कर रहे हैं क्योंकि सभी की नजर मधुबन निवासियों की तरफ जाती है। मधुबन में क्या हो रहा है, मधुबन वाले क्या कर रहे हैं। मधुबन में आप नही रहते हो लेकिन वर्ल्ड की स्टेज पर रहते हो। तो स्टेज पर स्वत: ही सभी की नजर जाती है। अच्छा है सेवा में मैजारिटी का सर्टिफिकेट बहुत अच्छा है समान बनने में। अभी बनना है, यह लक्ष्य रखना है। बाप जैसी चलन हो, चेहरा हो, तभी बाप प्रत्यक्ष होगा। तो अभी मधुबन निवासियों को हर संकल्प, बोल....बोल में भी समानता चाहिए। और कर्म, आपस में सम्बन्ध-सम्पर्क, सबमें समानता। यह विशेष अटेन्शन देना है। साधारण है, समानता लानी है। सेवा का बल चला रहा है लेकिन चारों ही सबजेक्ट में अपने को चेक करो। फिर अपने को सर्टीफिकेट दो। अच्छा। आज विशेष मिलना तो हुआ ना। बाप ने तो आपकी आशा पूर्ण की, अभी बाप की आशा पूर्ण करना।

समर्पण होना यह छोटी-सी बात नहीं है। समर्पित उसको कहा जायेगा जो बाप समान सभी सबजेक्ट में हो। बाकी विशेष तो हो ही। मधुबन की सभी आत्माओं को हर एक बहुत बड़े रिगार्ड सै देखते हैं। मधुबन के हैं, मधुबन के हैं। तो काई कमाल करके दिखाना, आपस में छोटा-छोटा संगठन का प्रोग्राम बनाके बाप समान किस-किस बात में हैं. किसमे थोड़ा-सा रहा हुआ है, यह चेक करो। वास्तव में चेकिंग जितनी अपने आप गहरी कर सकते हो, यथार्थ कर सकते हो वैसा दूसरा नही कर सकता। बाकी सभी अच्छी तरह से रह रहे हो ना, कोई कमी तो नहीं है| यह भी भाग्य है। भाग्य ने आपको मधुबन निवासी बनाया है। तो सब खुश हैं? खुश रहत हो कि बीच-बीच में थोडे नाराज़ हा जाते हो? अपने आपको रियलाइज़ करो। रियलाइज अर्थात् मैं जो हूँ, जैसा हूँ, वैसे अपने को समझना। आत्मा हूँ, यह कॉमन है, लेकिन चलते-फिरते महूससता आत्म-अभिमानी की रहती है? इसको कहेंगे रियलाइजेशन। संस्कार है, संस्कार का ज्ञान है, नॉलेज है, संस्कार समाप्त हुए हैं, परिवर्तन हुए हैं व नहीं? यह अपने को महसूस हो, यह नहीं है, यह ठीक है, यह नहीं ठीक है। दूसरा महसूस करायेगा तो महसूस नहीं होता है। तो अपने आपको रियलाइज करने का पाठ पढ़ाना। जैसे सप्ताह कोर्स करते हो ना आत्मा, परमात्मा, योग, ड्रामा, ऐसे अपने आपको रियलाइज करना। अभी रियलाइजेशन का समय है। जो बाप चाहता है वह कर रहा हूँ? सम्बन्ध-सम्पर्क में भी रियलाइज करो, शुभभावना, शुभकामना है? ठीक है। रियलाइजेशन कोर्स अपने आपको कराओ। यह दूसरा नहीं करा सकता। सब कोर्स किया, अभी लास्ट कोर्स है रियलाइजेशन कोर्स। अपने को चलाना नहीं, चलता है, है ही। समय धोखा नहीं दे देवे ना, मधुबन निवासी हो। तो साथ चलने वाले हो ना। बीच में अटकने वाले तो नहीं हो ना। तो रियलाइजेशन कोर्स अपने आपका शुरू करो। एक-एक बात में रियलाइज करो। अच्छा। मिल तो लिया, अभी क्या करना है।

दृष्टि लेनी है तो दृष्टि में बापदादा को सदा रखना है। ऐसे ही दृष्टि नहीं लेनी है। दृष्टि लेना अर्थात् दृष्टि में बाप को समाना। ऐसी दृष्टि लेना। अच्छा।

ओम शान्ति।